सबसे श्रेष्ठ कौन?
कई साल पहले की बात है , एक संत थे, जो बहुत ऊँचे दर्जे के थे , उनकी कुटिया गाँव से कुछ दूरी पर थी , वो हमेशा अपने चाहने वालों को एक ईश्वर की उपासना और नेक जीवन जीने की सलाह देते थे, उनके साथ कुछ शिष्य भी रहा करते थे !!
एक दिन शिष्यों में आपस मे बहस होने लगी कि उनके गुरु की नज़र में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं , और यह बहस गुरु के पास तक पहुँच गयीं !! तो गुरु ने समझाया कि जिस तरह सूरज की किरण सब पर एक जैसी पढ़ती है वैसे ही मेरी नज़र में भी तुम सब समान हो, कोई छोटा या बड़ा नहीं हैं !!
फिर भी शिष्यों को संतुष्टि नहीं हुई और कुछ मुँह लगे शिष्य गुरु के पीछे पड़ गये कि आज तो आपको बताना पड़ेगा !! तब गुरु ने उस शिष्य की ओर इशारा किया जो इस बहस से दूर अपनी मस्ती में बाहर मिट्टी के ढेर पर बैठा था !!
इतना सुनते ही सब बोल पड़े की वो तो कभी सेवा करते दिखा नहीं, बस अपनी धुन में बैठा रहता हैं !! इस पर संत ने सबको अपने पास बुलाया और सबके हाथ में एक-एक सिक्का दे दिया और कहा सिक्के को ऐसी जगह छुपाओ की कोई भी देख नहीं पाये, फिर क्या था सबने अपने हिसाब से छुपा दिया !!
संत ने एक-एक करके सब से पूछा तो किसी ने कपास में, किसी ने मिट्टी में, किसी ने गेंहू में जिसको जैसा उचित लगा वहाँ छुपा दिया ! अब सन्त ने उससे पूछा जिसे श्रेष्ठ बताया था ! उस शिष्य ने मुठ्ठी खोलकर सिक्का दिखाया, तो संत ने उससे पूछा कि क्यों नहीं छुपाया तुमने सिक्का ??
उस शिष्य ने जवाब दिया कि मुझे ऐसी कोई भी जगह नहीं मिली जहाँ ईश्वर न देखता हो !! तो संत ने सबकों कहा, देखा तुमने मैं इसलिए इसे चाहता हूँ, क्यों की यह ईश्वर को देखकर काम करता है, यह मेरे आने से पहले उस जगह को साफ कर देता हैं जहाँ मुझे आना है !और तुम दिखाकर सेवा करते हो ,और ये छुपा कर करता हैं !!
तो प्रिय आत्मीय जनों हमेशा ईश्वर को देख के काम करो और सेवा ऐसी करो कि सीधे हाथ से करो तो उलटे हाथ को भी मालूम ना पड़े ! ताकि हम लोग भी गुरु की नज़र में श्रेष्ठ बन सकें ।
कई साल पहले की बात है , एक संत थे, जो बहुत ऊँचे दर्जे के थे , उनकी कुटिया गाँव से कुछ दूरी पर थी , वो हमेशा अपने चाहने वालों को एक ईश्वर की उपासना और नेक जीवन जीने की सलाह देते थे, उनके साथ कुछ शिष्य भी रहा करते थे !!
एक दिन शिष्यों में आपस मे बहस होने लगी कि उनके गुरु की नज़र में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं , और यह बहस गुरु के पास तक पहुँच गयीं !! तो गुरु ने समझाया कि जिस तरह सूरज की किरण सब पर एक जैसी पढ़ती है वैसे ही मेरी नज़र में भी तुम सब समान हो, कोई छोटा या बड़ा नहीं हैं !!
फिर भी शिष्यों को संतुष्टि नहीं हुई और कुछ मुँह लगे शिष्य गुरु के पीछे पड़ गये कि आज तो आपको बताना पड़ेगा !! तब गुरु ने उस शिष्य की ओर इशारा किया जो इस बहस से दूर अपनी मस्ती में बाहर मिट्टी के ढेर पर बैठा था !!
इतना सुनते ही सब बोल पड़े की वो तो कभी सेवा करते दिखा नहीं, बस अपनी धुन में बैठा रहता हैं !! इस पर संत ने सबको अपने पास बुलाया और सबके हाथ में एक-एक सिक्का दे दिया और कहा सिक्के को ऐसी जगह छुपाओ की कोई भी देख नहीं पाये, फिर क्या था सबने अपने हिसाब से छुपा दिया !!
संत ने एक-एक करके सब से पूछा तो किसी ने कपास में, किसी ने मिट्टी में, किसी ने गेंहू में जिसको जैसा उचित लगा वहाँ छुपा दिया ! अब सन्त ने उससे पूछा जिसे श्रेष्ठ बताया था ! उस शिष्य ने मुठ्ठी खोलकर सिक्का दिखाया, तो संत ने उससे पूछा कि क्यों नहीं छुपाया तुमने सिक्का ??
उस शिष्य ने जवाब दिया कि मुझे ऐसी कोई भी जगह नहीं मिली जहाँ ईश्वर न देखता हो !! तो संत ने सबकों कहा, देखा तुमने मैं इसलिए इसे चाहता हूँ, क्यों की यह ईश्वर को देखकर काम करता है, यह मेरे आने से पहले उस जगह को साफ कर देता हैं जहाँ मुझे आना है !और तुम दिखाकर सेवा करते हो ,और ये छुपा कर करता हैं !!
तो प्रिय आत्मीय जनों हमेशा ईश्वर को देख के काम करो और सेवा ऐसी करो कि सीधे हाथ से करो तो उलटे हाथ को भी मालूम ना पड़े ! ताकि हम लोग भी गुरु की नज़र में श्रेष्ठ बन सकें ।