एक बार एक नौजवान लड़के ने बुजुर्ग से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?
बुजुर्ग ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो। वो मिले, फिर बुजुर्ग ने नौजवान से उसके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक बुजुर्ग ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया।
लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन बुजुर्ग ताकतवर था और उसे तब तक डुबोये रखा जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा, फिर बुजुर्ग ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना।
बुजुर्ग ने पूछा- “जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
लड़के ने उत्तर दिया- “सांस लेना”
बुजुर्ग ने कहा- “यही सफलता का रहस्य है, जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हें मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है।
शिक्षा:- जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते हैं तो वो चीज आपको मिल जाती है।
जैसे- छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न भूतकाल में जीते हैं न भविष्य में, वे हमेशा वर्तमान में जीते हैं… और जब उन्हें खेलने के लिए कोई खिलौना चाहिए होता है या खाने के लिए कोई टॉफ़ी चाहिए होती है… तो उनका पूरा ध्यान, उनकी पूरी शक्ति बस उसी एक चीज को पाने में लग जाती है और वे उस चीज को पा लेते हैं।
इसी प्रकार, सफलता पाने के लिए एकाग्रता बहुत ज़रूरी है, सफलता को पाने की जो चाहत है उसमें ईमानदारी होना बहुत ज़रूरी है.. और जब आप वो एकाग्रता और वो ईमानदारी पा लेते हैं तो सफलता आपको मिल ही जाती है..!!
अविश्वास उस कमजोर ईंट के समान है जो हमारे संबंधो की मजबूत दिवार को गिराने का कारण बनता है। इसलिए संबधों की मजबूती के लिए परस्पर विश्वास प्रथम आवश्यक्ता है। विश्वास की ईंट जितनी मजबूत होगी हमारे संबंध भी उतने ही टिकाऊ होंगे।
जिस प्रकार गलती हो जाने पर डायरी नहीं फेंकी जाती अपितु गलती वाला पन्ना फाड़ दिया है। ठीक इसी प्रकार अगर रिश्तों में कभी गलती हो जाए तो रिश्ते को तोड़ने की बजाए गलती वाले पन्ने को फाड़कर रिश्ते को बचा लेना ही बुद्धिमानी है। विश्वास ही संबंधों को प्रेमपूर्ण बनाता है। जब हमारे द्वारा प्रत्येक बात का मुल्यांकन स्वयं की दृष्टि से किया जाता है तो वहाँ अविश्वास जरूर उत्पन्न हो जाता है।
जरूरी नहीं कि हर बार हमारे मुल्यांकन करने का दृष्टिकोण सही हो इसलिए संबंधों की मधुरता के लिए अपने दृष्टिकोण के साथ-साथ दूसरे की भावनाओं को महसूस करने का गुण भी हमारे भीतर जरूर होना चाहिए। संबध जोड़ना महत्वपूर्ण नहीं अपितु संबंध निभाना महत्वपूर्ण है। संबंधों का जुड़ना संयोग हो सकता है मगर संबंधों को निभाना जीवन की एक साधना ही है।
बुजुर्ग ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो। वो मिले, फिर बुजुर्ग ने नौजवान से उसके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक बुजुर्ग ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया।
लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन बुजुर्ग ताकतवर था और उसे तब तक डुबोये रखा जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा, फिर बुजुर्ग ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना।
बुजुर्ग ने पूछा- “जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
लड़के ने उत्तर दिया- “सांस लेना”
बुजुर्ग ने कहा- “यही सफलता का रहस्य है, जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हें मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है।
शिक्षा:- जब आप सिर्फ और सिर्फ एक चीज चाहते हैं तो वो चीज आपको मिल जाती है।
जैसे- छोटे बच्चों को देख लीजिये वे न भूतकाल में जीते हैं न भविष्य में, वे हमेशा वर्तमान में जीते हैं… और जब उन्हें खेलने के लिए कोई खिलौना चाहिए होता है या खाने के लिए कोई टॉफ़ी चाहिए होती है… तो उनका पूरा ध्यान, उनकी पूरी शक्ति बस उसी एक चीज को पाने में लग जाती है और वे उस चीज को पा लेते हैं।
इसी प्रकार, सफलता पाने के लिए एकाग्रता बहुत ज़रूरी है, सफलता को पाने की जो चाहत है उसमें ईमानदारी होना बहुत ज़रूरी है.. और जब आप वो एकाग्रता और वो ईमानदारी पा लेते हैं तो सफलता आपको मिल ही जाती है..!!
अविश्वास उस कमजोर ईंट के समान है जो हमारे संबंधो की मजबूत दिवार को गिराने का कारण बनता है। इसलिए संबधों की मजबूती के लिए परस्पर विश्वास प्रथम आवश्यक्ता है। विश्वास की ईंट जितनी मजबूत होगी हमारे संबंध भी उतने ही टिकाऊ होंगे।
जिस प्रकार गलती हो जाने पर डायरी नहीं फेंकी जाती अपितु गलती वाला पन्ना फाड़ दिया है। ठीक इसी प्रकार अगर रिश्तों में कभी गलती हो जाए तो रिश्ते को तोड़ने की बजाए गलती वाले पन्ने को फाड़कर रिश्ते को बचा लेना ही बुद्धिमानी है। विश्वास ही संबंधों को प्रेमपूर्ण बनाता है। जब हमारे द्वारा प्रत्येक बात का मुल्यांकन स्वयं की दृष्टि से किया जाता है तो वहाँ अविश्वास जरूर उत्पन्न हो जाता है।
जरूरी नहीं कि हर बार हमारे मुल्यांकन करने का दृष्टिकोण सही हो इसलिए संबंधों की मधुरता के लिए अपने दृष्टिकोण के साथ-साथ दूसरे की भावनाओं को महसूस करने का गुण भी हमारे भीतर जरूर होना चाहिए। संबध जोड़ना महत्वपूर्ण नहीं अपितु संबंध निभाना महत्वपूर्ण है। संबंधों का जुड़ना संयोग हो सकता है मगर संबंधों को निभाना जीवन की एक साधना ही है।