बच्चों को भोगी विलासी न बनाएं। तपस्वी चरित्रवान बुद्धिमान ईमानदार बनाएं। तब वे अपना और आपका भी कल्याण कर पाएंगे। आज बहुत से माता-पिता ऐसी शिकायत करते हैं कि हमारे बच्चे हमारी बात नहीं मानते, भारतीय सभ्यता से बहुत दूर हो गए हैं। जन्मदिन पर केक काटते हैं। होटल में पार्टी मनाते हैं। क्लब में जाते हैं, देर रात तक जागते हैं, डांस आदि में बहुत रुचि रखते हैं। हमें गुड नाईट और गुड मॉर्निंग बोलते हैं। पांव छू कर नमस्ते नहीं करते। हम जो बात कहते हैं, उसे वे मानते नहीं, अपनी मनमानी करते हैं इत्यादि।
माता पिता की ये सब शिकायतें क्यों आने लगी ? इसमें मुख्य दोषी कौन है ? इसका उत्तर है, माता पिता स्वयं दोषी हैं। उन्होंने अपने बच्चों को यह कब सिखाया, कि अपने से बड़ों के पांव छू कर नमस्ते करो। माता पिता ने बच्चों को यह कब सिखाया कि जन्मदिन होटल पार्टी में नहीं मनाएंगे, घर में हवन करके मनाएंगे। माता पिता ने बच्चों को मन्दिरों में जाना, भगवान की उपासना करना, दो-काल सन्ध्या करना, यज्ञ हवन करना, रोगियों की सेवा करना, परोपकार करना, गरीब लोगों की सहायता करना, भारतीय वेशभूषा पहनना, सभ्यता से सम्मान से बोलना, तपस्वी चरित्रवान बुद्धिमान ईमानदार बनना, बड़ों का आदर करना, प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहना आदि, इस प्रकार की बातें, बच्चों को माता-पिता ने कब सिखाई।
उन्होंने तो बचपन से ही बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई, और अंग्रेजियत सिखाई। धन कमाने का, धनवान बनने का ही लक्ष्य सिखाया। केवल भोगवादी ही बनाया। इतनी गलतियां करने के बाद अब शिकायत करते हैं। अंग्रेजी पढ़ाइए इसमें कोई आपत्ति नहीं है। आज व्यापार नौकरी के लिए अंग्रेजी सीखना आवश्यक है। इसलिये अंग्रेजी भले ही सिखाओ, परन्तु अंग्रेजियत मत सिखाओ। जीवन शैली तो भारतीय ही होनी चाहिए।
माता पिता की ये सब शिकायतें क्यों आने लगी ? इसमें मुख्य दोषी कौन है ? इसका उत्तर है, माता पिता स्वयं दोषी हैं। उन्होंने अपने बच्चों को यह कब सिखाया, कि अपने से बड़ों के पांव छू कर नमस्ते करो। माता पिता ने बच्चों को यह कब सिखाया कि जन्मदिन होटल पार्टी में नहीं मनाएंगे, घर में हवन करके मनाएंगे। माता पिता ने बच्चों को मन्दिरों में जाना, भगवान की उपासना करना, दो-काल सन्ध्या करना, यज्ञ हवन करना, रोगियों की सेवा करना, परोपकार करना, गरीब लोगों की सहायता करना, भारतीय वेशभूषा पहनना, सभ्यता से सम्मान से बोलना, तपस्वी चरित्रवान बुद्धिमान ईमानदार बनना, बड़ों का आदर करना, प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहना आदि, इस प्रकार की बातें, बच्चों को माता-पिता ने कब सिखाई।
उन्होंने तो बचपन से ही बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई, और अंग्रेजियत सिखाई। धन कमाने का, धनवान बनने का ही लक्ष्य सिखाया। केवल भोगवादी ही बनाया। इतनी गलतियां करने के बाद अब शिकायत करते हैं। अंग्रेजी पढ़ाइए इसमें कोई आपत्ति नहीं है। आज व्यापार नौकरी के लिए अंग्रेजी सीखना आवश्यक है। इसलिये अंग्रेजी भले ही सिखाओ, परन्तु अंग्रेजियत मत सिखाओ। जीवन शैली तो भारतीय ही होनी चाहिए।